मंदसौर- अमृत मय साधना में शंका का समावेश हो जाए तो वो जहर में परिवर्तित हो जाता है।शंका साधना का सबसे खतरनाकशत्रु है। उक्त विचार राष्ट्र संत श्री कमलमुनि कमलेश ने जैन दिवाकर प्रवचन हाल में व्यक्त किए। संतश्री ने कहा कि शंका और श्रद्धा एक शरीर में एक साथ नहीं रह सकते है। श्रद्धा और आस्था की नींव पर ही साधना की मंजिल खड़ी जा सकती है। श्रद्धाही साधना का असली प्राण है। कण भर साधना भी मण भर के रूप में बदल जाती है।
मुनि श्री कमलेश ने कहा कि शंका में व्यक्ति भ्रमित हो जाता है, परस्पर अविश्वास पैदा हो जाता है। प्यार भी नफरत में परिवर्तित हो जाता है।
राष्ट्रसंत श्री ने बताया कि श्रद्धा दिल की आस्था का विषय है, उसे तर्क वितर्क से न तोला जा सकता है ना समझा जा सकता है। ये अनुभूति का विषय है।
जैन संत श्री ने कहा कि बिना आस्था से की गई साधना मुर्दे को शृंगार कराने के समान होती है। सम्यक श्रद्धा अत्यंत दुर्लभ है उसी में धर्म भगवान और मोक्ष का निवास है। धर्मभाभा में कौशल मुनि जी ने अंतागढ़ सूत्र का वाचन किया। घनश्याम मुनि जी ने भीविचार व्यक्त किए। तपस्वी अक्षत मुनि जी के 24 उपवास, कमलेश नलवाया के 9, सोनल जैन के 7 उपवास की तपस्या चल रही है।
मुनि श्री कमलेश ने कहा कि शंका में व्यक्ति भ्रमित हो जाता है, परस्पर अविश्वास पैदा हो जाता है। प्यार भी नफरत में परिवर्तित हो जाता है।
राष्ट्रसंत श्री ने बताया कि श्रद्धा दिल की आस्था का विषय है, उसे तर्क वितर्क से न तोला जा सकता है ना समझा जा सकता है। ये अनुभूति का विषय है।
जैन संत श्री ने कहा कि बिना आस्था से की गई साधना मुर्दे को शृंगार कराने के समान होती है। सम्यक श्रद्धा अत्यंत दुर्लभ है उसी में धर्म भगवान और मोक्ष का निवास है। धर्मभाभा में कौशल मुनि जी ने अंतागढ़ सूत्र का वाचन किया। घनश्याम मुनि जी ने भीविचार व्यक्त किए। तपस्वी अक्षत मुनि जी के 24 उपवास, कमलेश नलवाया के 9, सोनल जैन के 7 उपवास की तपस्या चल रही है।