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सांडों का शहर बना मंडीदीप नगर प्रशासन की अनदेखी से रहवासी परेशान

औद्योगिक नगरी वैसे तो कारखानों की वजह से जानी जाती है
 मगर पिछले 1 साल से आवारा मवेशियों के आतंक से नगर का नाम रोशन हो रहा है एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में सबसे ज्यादा सांड मंडीदीप नगर में है जो आए दिन बच्चों बुजुर्ग महिलाओं को अपना शिकार बना रहे हैं । एक समय था जब इन सांडो की कीमत बहुत थी किसान इन्हें जोत कर अपने खेत में सुबह से शाम तक इनसे मेहनत करवाता था मगर आज आधुनिक युग है छोटे से छोटे किसान के यहां ट्रैक्टर होने से इनकी कीमत दो कौड़ी की भी नहीं बची और यह अब रास्ते पर आ गए । दिनभर यह अपनी पेट की आग बुझाने के लिए नगर की गलियों में भटकने को मजबूर हो गए इंसान की फितरत का भी जवाब नहीं है मंदिर जाता है तो पत्थर के नंदी को दूध और जल चढ़ाता है मगर जब यह नंदी उसके दरवाजे पर आते है तो इन्हें डंडे और लाठियों से मार कर भगाता है । ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं है लाखों करोड़ों रुपए गौशालाओं के नाम पर सरकार इन पर खर्च करती है मगर कुछ लालची अधिकारी और गौशाला संचालक इन बेजुबानो का हक खुद डकार जाते हैं । यह हम इसलिए कह रहे हैं कि मंडीदीप नगर के आसपास 10 किलोमीटर के अंदर में दर्जनों गौशालाये  संचालन हो रही हैं जो सरकार के रहमों करम पर हैं जिनकी जिम्मेदारी होती है कि वह इन बेजुबानो की देखरेख करें मगर ऐसा यहां देखने को नहीं मिलता है यहा भूख से तड़पते इन बेजुबानों के पास दर-दर भटकने के शिवा और कोई रास्ता नहीं है । इनका पेट भरा हो तो यह मस्ती करते हैं और रास्ते पर खड़ी दो पहिया वाहन और चार पहिया वाहनों को नुकसान पहुंचाते हैं और अगर इनका पेट खाली हो तो यह गुस्से में आम नागरिकों को नुकसान पहुंचाते हैं अब जानते हैं इस समस्या के पीछे का कारण मंडीदीप नगर पहले से ही आ व्यवस्थाओं का नगर है यहां की ओछी राजनीति के चलते यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ा है दो लाख की आबादी के शहर में एक सब्जी मंडी नहीं होने से यह सारी समस्या उत्पन्न हो रही है फुटकर सब्जी व्यापारी जहां मर्जी आती है वहां पर अपनी दुकान खोल कर बैठ जाते हैं जिससे यातायात तो बधित होता ही है नगर की सुंदरता पर भी दाग लगता है । अब तो ऐसा लगता है कि इंसान और जानवरों को एक साथ रहने की आदत डालनी पड़ेगी क्योंकि प्रशासन अभी कुंभकरण की नींद सो रहा है 

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