बिहार में दोनों चरणों का मतदान सम्पन्न हो चुका है और अब सभी उम्मीदवारों का भविष्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में बंद हो चुका है। 14 नवंबर के परिणाम को लेकर पूरे प्रदेश में उत्सुकता का वातावरण है। गली-चौराहों से लेकर सोशल मीडिया तक चर्चाओं और भविष्यवाणियों का दौर जारी है। अधिकांश एग्ज़िट पोल में एनडीए गठबंधन को बढ़त मिलती हुई दिखाई दे रही है, परंतु अंतिम परिणाम आने तक संयम और प्रतीक्षा बनाए रखना ही लोकतांत्रिक मर्यादा के अनुरूप है।
जनता का रुझान और एनडीए की बढ़त के कारण
बिहार जैसे राजनीतिक रूप से सजग राज्य में जनता की सोच केवल नारों और वादों पर आधारित नहीं होती, बल्कि दीर्घकालिक अनुभवों और जमीनी कार्यों पर भी निर्भर करती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लंबे कार्यकाल के बावजूद व्यापक जनविरोध देखने को नहीं मिला। इसका प्रमुख कारण यह है कि उन्होंने शासन की निरंतरता में कई ऐसे कदम उठाए जो आम जनता के जीवन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
पिछले चुनाव में प्रस्तुत किया गया उनका “सात निश्चय कार्यक्रम” -- जैसे कि नल जल योजना, हर घर बिजली, युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम, महिला सशक्तिकरण, सड़क और पुल निर्माण, स्वास्थ्य सेवा विस्तार आदि -- अधिकतर धरातल पर लागू हुए। यह भी सत्य है कि इन योजनाओं का लाभ गाँवों तक पहुँचा, जिसने एक वर्ग को सरकार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखा।
हालाँकि यह भी उतना ही सत्य है कि बिहार के विकास की यात्रा अभी अधूरी है। सड़क और बिजली के बाद अब राज्य को रोजगार, शिक्षा और कृषि आधारित उद्योगों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
नई सरकार के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ
1. रोजगार सृजन और पलायन पर रोक
बिहार के लगभग हर परिवार का कोई न कोई सदस्य आज भी रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर है। औद्योगिक निवेश की कमी, बुनियादी ढांचे की सीमाएँ और स्थानीय स्तर पर कौशल प्रशिक्षण की अपर्याप्तता इस समस्या की जड़ हैं। नई सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि युवाओं के लिए स्थानीय रोजगार और लघु उद्योग को प्राथमिकता दी जाए।
2. शिक्षा व्यवस्था का पुनर्गठन
बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं। विद्यालयों में शिक्षकों की कमी, गुणवत्ताहीन पाठ्य सामग्री और उच्च शिक्षा में सीमित अवसर युवाओं की क्षमता को सीमित कर रहे हैं। नई सरकार को स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक शिक्षा में गुणात्मक सुधार को नीति का केन्द्रीय भाग बनाना होगा।
3. स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण
कोविड काल में यह स्पष्ट हो चुका है कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को और सशक्त बनाने की अत्यंत आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक डॉक्टरों की नियुक्ति, दवाओं की उपलब्धता और बुनियादी उपकरणों की स्थिति सुधारना जरूरी है।
4. कृषि आधारित उद्योगों का विस्तार
बिहार की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है, परंतु किसानों की आमदनी अभी भी सीमित है। राज्य की नई सरकार को कृषि को केवल खेती तक सीमित न रखकर प्रोसेसिंग यूनिट, कोल्ड स्टोरेज, फूड पार्क और स्थानीय बाजार व्यवस्था को सशक्त करना होगा।
5. बुनियादी ढांचे और शहरी विकास
सड़क, बिजली, जल, और डिजिटल कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में संतुलित विकास अभी भी एक चुनौती है। शहरी क्षेत्रों में ट्रैफिक, स्वच्छता और आवास योजनाओं पर ध्यान देना होगा।
6. भ्रष्टाचार नियंत्रण और प्रशासनिक पारदर्शिता
विकास के हर प्रयास को सफलता तब ही मिलती है जब शासन पारदर्शी और उत्तरदायी हो। सरकारी योजनाओं की क्रियान्वयन प्रक्रिया में डिजिटलीकरण और सोशल ऑडिट को बढ़ावा देकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है।
भविष्य की प्राथमिकताएँ -- बिहार के लिए विकास का नया एजेंडा
नई सरकार के लिए यह अवसर है कि वह बिहार को “बुनियादी विकास से आगे बढ़ाकर आर्थिक आत्मनिर्भरता” की ओर ले जाए। इसके लिए नीति का केंद्र बिंदु होना चाहिए:
- कौशल आधारित शिक्षा और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देना।
- गांव आधारित उद्योग और हस्तशिल्प को पुनर्जीवित करना।
- महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देना।
- पर्यटन, आईटी और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नए अवसर तलाशना।
- और सबसे महत्वपूर्ण — राज्य की छवि को “पलायन करने वाला” से “रोज़गार देने वाला” प्रदेश में बदलना।
निष्कर्ष
बिहार ने हमेशा लोकतंत्र की परिपक्वता का परिचय दिया है। इस बार भी जनता ने अपने मत से भविष्य की दिशा तय कर दी है। अब यह नई सरकार की जिम्मेदारी होगी कि वह जनता की उम्मीदों पर खरी उतरे, चुनावी वादों को क्रियान्वयन में बदले और बिहार को “विकास, रोजगार और सुशासन” की नई परिभाषा दे।
सरकार किसी की भी बने, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विकास की इस निरंतर यात्रा को बाधित न होने दिया जाए। बिहार का असली “सत्ता परिवर्तन” तब होगा जब नीति और नीयत दोनों जनता के हित में मिल जाएँ -- क्योंकि लोकतंत्र में अंतिम जीत न किसी दल की होती है, न किसी नेता की, बल्कि जनता की होती है।
लेखक - रमेश झा


